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गुरुवार, 1 अगस्त 2019

ऐतिहासिक व वर्तमान परिवेश में जाट समाज

जब भी मैं जाटों के बारे में लिखता हूँ तो समझा जाना चाहिए कि मैं भारत के वजूद की बात कर रहा हूँ।ज्ञात इतिहास के पन्नों,उजले लम्हों की बात करते है छोटे-छोटे कबीलों व जनपदों का एकीकरण करके चंद्रगुप्त मौर्य मगध साम्राज्य खड़ा करता है।आजादी के आंदोलन की महत्वपूर्ण डोर समझे जाने वाले गांधीजी ने अपना सफर अहिंसा से शुरू किया 1942में “करो या मरो”का नारा देकर हिंसा पर खत्म किया था।चंद्रगुप्त मौर्य ने हिंसा को खत्म करने के लिए हिंसा का रास्ता अख्तियार किया और इस सफर को महान सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध जीतकर अहिंसा पर खत्म किया।

तमाम इतिहासकारों ने सिकंदर को इतना महान घोषित किया कि तत्कालीन समय मे उसके मुकाबले कोई राजा नहीं था मगर झेलम नदी के किनारे जब जाट राजा पौरस के एक वार से ही सिकंदर घोड़ी से गिर पड़ा और उस चोट से ही दुनियां से रुखसत हो गया।



78ईसवी में महान जाट राजा कनिष्क ने शक संवत चलाया जिस आज भारतीय पंचांग के रूप में उपयोग किया जाता है।कनिष्क को भारतीय इतिहाड़कारों ने कोई जगह नहीं दी मगर अफगानिस्तान के स्कूली पाठ्यक्रम में बड़ी शान से पढ़ाया जाता है क्योंकि उन लोगों उपासना पद्धति नई अपनाई है अपने पुरखों को नहीं भूले है।

57बीसी में मालवा में महान जाट राजा विक्रमादित्य हुए जिसने विक्रम संवत चलाया था और यह भारतीय पंचांग का आधार बन गया।उनकी ताकत,न्यायप्रियता व शोहरत ऐसी थी कि उनका नाम एक उपाधि बन गया और बाद के राजा अपने नाम के साथ विक्रमादित्य को उपाधि के रूप में प्रयोग करते थे।

सातवीं सदी में महान जाट राजा हर्षवर्धन हुए जिसे दोगले इतिहासकार इतिहास में उचित जगह देने में नाकाम हो गए थे।वर्तमान अफगानिस्तान के छोटे से इलाके गजनी का एक लुटेरा दूसरे लुटेरों को एकत्रित करता हुआ 1025 में शान से सोमनाथ का मंदिर लूटकर चला गया और सिंध-मुल्तान के जाटों ने उस धन को वापिस लूटा व घायलावस्था में गजनी की मौत हो गई।गजनी का अफगानिस्तान के इतिहास में कहीं कोई जिक्र नहीं है मगर भारतीय इतिहासकारो ने अपने राजाओं की नाकामी व पोंगा-पंथियों के षड्यंत्र को कमतर न बताने के चक्र में महमूद गजनी को महान राजा बनाकर भारतीय जनमानस के सामने पेश कर दिया।

1192 में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी थी और तमाम जयचंद तमाशबीन बन गए थे।भले ही उस समय किसी जाट राजा के हाथ मे कोई साम्राज्य न रहा हो मगर रामलाल खोखर के नेतृत्व में कुछ जाट किसान जुटे और 1206ईसवी में गौरी की हत्या करके पृथ्वीराज चौहान की मौत का बदला लिया।

आपस मे सत्ता की लालसा में लड़ रहे स्थानीय राजाओं की फुट की बदौलत एक लुटेरा तैमूर लंग आता है और लूट-खसोट शुरू कर देता है तो जाट हरवीर गुलिया किसानों को एकत्रित करके तैमूर लंग को मौत के घाट उतार देता है।

महाराजा सूरजमल,महाराजा जवाहर सिंह का इतिहास कौन नहीं जानता है!जब रियासतों की अधीनता स्वीकार करने व गुलामी के टैक्स वसूली कार्यकर्ता बनने के लिए मुगल दरबार मे बहन-बेटियों की डोलियां भेजी जा रही थी उस समय एक ब्राह्मण बेटी हरदौली को छुड़ाने के लिए भरतपुर का जाट राजा दिल्ली पर चढ़ाई करता है।महाराजा रणजीत सिंह लाहौर को अपनी राजधानी बनाकर अफगानिस्तान तक राज करते है।अभेद्य कश्मीर को पहली बार जाट हरिसिंह नलवा ही जीतता है।जब देशी राजा भाड़े के कार्यकर्ता बन गए तो बृजमंडल से जाट वीर गोकुला किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ खड़ा होकर लड़ता है।

अपना जीवित कतरा-कतरा मानवता के लिए कुर्बान कर दिया मगर किसी उपासना पद्धति तले आने से इनकार कर दिया।धार्मिक कट्टरता के खिलाफ राजाराम जाट खड़ा होता है और औरंगजेब को आइना दिखाते हुए अकबर का मकबरा खोदकर अस्थियां निकालकर जला डालता है।

इस अमर बलिदानी कौम के बारे में लिखना शुरू करता हूँ तो हर अगली लाइन लिखते हुए एक जाट की महान कुर्बानी कुछ लिखने को मजबूर करती जाती है।1857की क्रांति के बारे में लिखना शुरू करता हूँ तो हर कस्बे से नाहर सिंह तेवतिया जैसे शूरमा मेरी कलम खींचते जाते है तो पटियाला के राजा जाट भूपेंद्रसिंह जैसे रोल्स रॉयस कारों को कूड़ेदान बनाकर अपने स्वाभिमान को अम्बर में रखते नजर आते है।

आजादी के आंदोलन के आईने से चंद कांग्रेसी नेताओं को किनारे कर दें तो हर इलाके से आजाद हिंद फौज के संस्थापक राजा महेंद्र प्रताप आपको नजर आते है तो हर खेत-खलिहान से अंग्रेजों के खिलाफ उठती बगावत की आंधी नजर आती है।

हर कालखंड में जब भी किसी भी राजा ने जनता पर अत्याचार किए तो जाट किसानों ने उसका मुकाबला किया।हर कालखंड में जब देशी राजाओं की आपसी फूट के कारण विदेशी लुटेरों ने वतन पर घात लगाया तो जाटों ने वतन की आबरू की हिफाजत की।जब-जब जरूरत पड़ी तब-तब अप्रशिक्षित किसान सैनिक बने और दो-दो हाथ करने को आगे आये।जब सरकारों को जरूरत पड़ी तो प्रशिक्षित जाट रेजिमेंट के रूप में दुनियाभर में अपने शौर्य की अमर गाथा लिख डाली।चाहे पिछले साल डोकलाम में खड़ा होना हो या अभी पुलवामा अटैक के बाद कश्मीर जाना हो सबसे पहले जाट रेजिमेंट ही पहुंचती है।

आज मेरा इरादा इतिहास लिखना नहीं है बल्कि जाट युवा कुछ भूल गए है उनको कुछ याद दिलाना चाहता हूँ।युवाओं से कहना चाहता हूँ कि अपने पुरखों की जीवनियां पढ़ो,उनके आदर्शों को पढ़ो और अपने जीवन मे ढालो!सियासत के चंद गद्दारों व धर्म के सौदागरों द्वारा हवाओं के साथ बहने की भूल मत करो!तुम इस देश का वजूद हो और तुम्हारे कंधो पर इस वतन की हिफाजत का,अमर तिरंगे को थामकर रखने का भार है।

जिन सीनों ने कभी न पूछा,गोली का अंजाम क्या है!
उसकी औलादें पूछ रही है,मजहब-ए-निजाम क्या है?

कितने बड़े शर्म की बात है!राजा जवाहर सिंह की माँ ने एक उलाहना दिया था कि तेरे बाप की पगड़ी दिल्ली में पड़ी और तूं अपनी पगड़ी सजा रहा है तो जवाहरसिंह ने दिल्ली को उधेड़कर रख दिया था और आज गद्दारों के षड्यंत्र द्वारा सैंकड़ों जाट युवा हरियाणा की जेलों में पड़े है मगर जाट युवा मुँह पर मूच्छों के ताव लगाकर कह रहे है जाट बलवान,जय भगवान!

बच्चों के पापा घर कब आएंगे
पूछ रही तुम्हारी बहन-बेटियां पनघट पर!
तुम भेजने में लगे हो गुंडों को
विधानसभा और संसद की चौखट पर!!

कब सवाल करोगे?कब उठोगे?कब जागोगे?आज मैं तुम्हारा मनोरंजन करने के लिए कुछ नहीं लिखूंगा।मेरी कलम आज मेरा दर्द उगलेगी,समाज का सच उगलेगी जिसे तुम्हे स्वीकार करना ही होगा!

तूफान रुके,लश्कर रुके,
मगर रुकेगी इस कलम की धार नहीं!
मुझे मंजिल का सिरा चाहिए
यह शर्मिदगी भरी मझधार नहीं!!

आज तुम हिन्दू बनकर मंदिर बनाने निकले हो तो मुस्लिम बनकर मस्जिद की जंग लड़ रहे हो!तुम हिन्दू-मुस्लिम की जंग लड़ रहे हो तो तुमसे मेरे कुछ सवाल भी है और कुछ नसीहतें भी!

क्यों नफरत की बू आती है पुरोहित और पुजारी से
क्यों प्रवचनी जहर फैलाते चौक और चौबारों से?
क्यों जिहादी तहरीरें होती मुल्ले और मौलवीयों से
क्यों देश विरोधी नारे गूंजते मस्जिद की दीवारों से??

जाट युवाओं तुम्हारे पुरखों का धर्म प्रकृति रही है,मानवता रही है इंसानियत रही है उनको पढ़ लो!यह धर्म का धंधा तुम्हारे बाप-दादाओं के सिलेबस में नहीं था तुम क्यों इतने उतावले हो रहे हो?हम इस देश का सबसे बड़ा मूलनिवासी समुदाय है।हमने प्रकृति पूजा भी भी देखी,बौद्ध व जैन धर्म भी देखे तो नास्तिक आजीवक सम्प्रदाय भी देखें है।हमने ब्राह्मण धर्म देखा है तो इस्लाम व ईसायत भी देखी है।जब धर्म की जकड़न हमारे ऊपर बढ़ती तो हमारे पुरखे उसके खिलाफ बगावत करते नजर आते है।मगर बड़ा दुःख होता है कि जिसके हाथों में अमर तिरंगा है वो तिरंगा छोड़कर धार्मिक झंडा उठाये घूम रहे है!

मेरे जाट वीरों!घना अंधेरा दिखे
तो मुझे तुम एक महान दहेज दो!
तोड़ दो ये धर्म के बंधन अब तुम
एक बार मेरे भगत को संसद भेज दो!!

अंत मे मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि

जाट युवाओं देख लो,
मेरी व्यथा अब तुम्हारे दरबार मे है!
तुम्हारी लाशों से सरकार बनी
और कातिल अब सरकार में है!!

(

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