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मंगलवार, 23 जून 2020

Fight the war where they aren't



लड़ो वहां, जहां दुश्मन न हो। सुन-जू, प्राचीन चाइना का बड़ा जनरल था और उसकी किताब "आर्ट ऑफ वार" एक क्लासिक मानी गयी है। इतनी क्लासिक कि उसके तौर-तरीके और कोट, दुनिया के बड़े बड़े डिफेंस कालेज में पढ़ाये जाते है। 

तो देखिए, चीन वहां कब्जा करता है जहां हम नही होते। ताजा हालात ये है कि आप जब गलवन घाटी में फौजे अड़ा रहे है, उसकी ताकत हजारो किमी दूर सिक्किम में जमा हो रही है।
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1965 में ऑपरेशन ज्रिबाल्टर शुरू हुआ। ये पाक की चाल थी, कश्मीर में फिर से कबायलियों को घुसाकर भारत के खिलाफ प्रायोजित विद्रोह की। पीछे से पाकी फ़ौज भी घुसी। जम्मू के इलाके हाथ से निकल गए। भारत की कश्मीर में पहुंच कट गई। भारत की गर्दन पाकिस्तान के हाथ मे थी। 

पाकिस्तान हमसे कश्मीर में लड़ रहा था। और हम.. उससे लड़ने गए लाहौर, where they aren't.  जो एक डिस्प्यूटेड टेरेटरी में एलओसी में झड़प का नाटक था, अंतरास्ट्रीय सीमा पार कर फुल फ्लेजेड युध्द में बदल दिया। इसकी उम्मीद न थी पाक को, तीन साल पहले चीन से मात खाया थका हारा भारत..  और ये मजाल। 

अब पाकिस्तान कश्मीर में आगे बढ़े या लाहौर और पिंडी बचाये। उसने युध्द विराम की याचना की। शास्त्री ने मान लिया। पाक ने कश्मीर खाली किया, हमने लाहौर छोड़ दिया। जीत हिंदुस्तान की मानी गयी। 

शास्त्री ने बयान तो नही दिए, मगर घर मे घुसकर मारने वाले अकेले पीएम वही थे। 
1967 तक शास्त्री नही रहे, नेहरू की बेटी आ गयी। चीन को गुमान था, बाप को पांच साल पहले हराया था। बेटी को तो यूं मसल देंगे। 

नाथूला खाली करने का आदेश दिया, कहा हमारी टेरेटरी है। भारत हटा नही, बाड़ लगानी शुरू कर दी। ये बड़ी हिमाकत थी। फ़ौज को धमकाने चीनी अफसर आया, तो धक्का मुक्की में उसका चश्मा टूट गया। 

वह गया, और बंकर से गोलियों की बरसात कर दी। खुले में बाड़ लगा रहे सैनिक मारे गए। चीनियों को उम्मीद थी की फ़्लैग मीटिंग होगी, भारत दया की भीख मांगेगा। 

मगर उन्हें आश्चर्य का ज्यादा वक्त नही मिला। 400 चीनी चींटीयों की तरह मारे गए - कैसे? इसलिए कि गोलियों से नहीं, गोलों से जवाब मिला। तोपें लगा दी भारत ने .. धूम धड़ाक, बूम !!! 

1962 में माह भर का युध्द हुआ था, कोई 1200 भारतीय फौजी शहीद हुए थे। यहां 3 दिन में उनके चार सौ मारे। 88 सैनिक भारत के भी शहीद हुए। यह आधिकारिक रेकॉर्ड में है कि उनकी लाशें चाइनीज टेरेटरी में पांच किमी अंदर से मिली। लड़कों ने घुसकर मारा था। बयान नही दिया था। 

चीन ने युध्द विराम मांगा, दिया गया। नाथूला तब से शांत है। पाक सीमा से हमेशा लाशें आती हैं। मगर चीन सीमा से उसके बाद कभी नही आई। 

2020 में जरूर आयी है। 
चीन का व्यवहार प्रिडिक्टेबल रहा है। वह हमारे कमजोर वक्त का इंतजार करता है, खाली पीक पर कब्जे करता है। वह हमसे वहां लड़ता है, जहां हम नही होते। जीत तभी है जब आप उससे वहां लड़ें, जहां वो नही है। वैसे लड़े जिसकी उसे उम्मीद नही है। ऐसा करने से पहले बयानबाजी न करें। 

तो बयान बन्द है। खुदा करे ये भय की चुप्पी नही, रणनीति की चुप्पी हो।

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