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शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

बाबा टिकैत

बाबा टिकैत...

वो भी समय था जब पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गांव सिसौली से कोई ऊंची आवाज में बोल देता तो दिल्ली के लुटियन जॉन में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो जाता!गांव में मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक पूछने आते थे कि "टिकैत बता तेरी इच्छा क्या है?"

दिल्ली का वोट क्लब खचाखच भरता था और पूरी सरकार घुटनों के बल होती थी।आज बाबा टिकैत के वंशजों को दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर ही लाठियों से रोक दिया जाता है,दिल्ली में घुसने तक नहीं दिया जाता है!

अदम गोंडवी का एक शेर है...

भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है!
अहले हिन्दुस्तान अब तलवार के साये में है!!

बाबा टिकैत अंतिम दिनों में व्यवस्था व हालातों से ज्यादा अपने लोगों की दशा व दिशा को लेकर बेहद निराश थे!निराश नेताओं व युवाओं को लेकर थी।आज दृश्य देख लीजिए

अपनी शानो-शौकत में मर्तबा आला रहे
हाथों में फ़ोन व दिमाग मे बलात्कारी बाबा रहे
खेल अब शोहरत पर जा टिका है " प्रेम"
चाहे किसान आत्महत्या का बोलबाला रहे
एक किसान नेता बनने को क्या चाहिए
5-7बेरीढ़ के चमचे,माइक व माला रहे

आज किसान नेता बिकाऊ माल है।बोलियां लगती है खुले बाजार में और किसानों के बच्चे खुश होकर महफ़िल सजाते है कि मेरे वाले की बोली अच्छी लगी है!मेरा वाला बड़ा हो गया,मेरे वाले का कद बढ़ गया है!

यहां अब कदम बढ़ाने की बातें नहीं होती जनाब!अब अपने किसान सेनापति का कद बढ़ाने के लिए भक्तों की सेनाएं तैयार होती है!

न भूली होती जड़ें अपनी
तो खंजर का कोई निशान नहीं होता!
मुद्दे त्याग भक्त बन बैठे
अब मंजर का कोई हिसाब नहीं होता!!

पीछे मुड़कर देखते है तो गर्व होता है कि हमारे पुरखे संघर्ष के सेनापति रहे और उनकी हुंकारों पर हुक्काम डोलते थे,वर्तमान देखे तो उस मोड़ पर खड़े है जहां से न कोई दिशा और न दशा बदलने को कोई साथी खड़ा है!भविष्य सोचकर तो रूह कांप जाती है!

आज बिकाऊ किसान नेताओं ने किसानों को मंडी का सामान समझ लिया है व उनके बच्चों को जयकारा गैंग के सिपाही!

मैँ अदब से सलाम करता हूँ
तो भक्त समझने लगते है!
जब दूरी बनाकर रखता हूँ
नादान समझने लगते है!!

क्योंकि अब निजाम तानाशाह है और किसान नेताओं को यकीन हो चला है कि तानाशाही के महिमामंडन में ही उनकी सुरक्षा है!कोई किसान पुत्र सच को सच कहने लगे तो सबसे पहले बिकाऊ किसान नेताओं की चूलें हिलती है क्योंकि शहंशाह को गुलाम सेनापति पसंद है जो सच को नीचे ही दबाकर रखे!

साभार

प्रेमाराम सियाग

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