यहाँ पचास प्रतिशत लोगों को आप गरीब कह सकते हैं. इनके बैंक खाते में बचत के नाम पर कुछ नहीं है, केवल कर्जा है.इनके जीवन का प्लान एक दिन, एक हफ्ता या महीने का ही बन पाता है. इनको आप मजदूर, कम जमीन वाला, ठेले वाला, निजी छोटी नौकरी वाला समझ सकते हैं.
इनके जीवन पर लॉकडाउन का असर क्या पड़ेगा ?
दो तीन महीने निकलने मुश्किल हैं, बाकी वापिस वही मैदान और वही घोड़े. वही कर्जा, वही अभाव. बीमारी में बिकती जमीन, सरकारी स्कूलों में 'मजबूरी में' पढ़ते बच्चे, कुपोषण. जी बहलाने और अभाव भूलने के लिए DJ, Mobile, धार्मिक उत्सब, जाति की 'इज्जत', धर्म की सुरक्षा.
तीस प्रतिशत लोग वे हैं, जिनको मध्यम तबका कह सकते हैं. इनके पास कुछ जमीन के टुकड़े हैं, छोटी मगर सरकारी नौकरी है, छोटी दूकान है. ये समाज का सेंडविच है ! न अमीर हैं और न आपने आपको गरीब मानना है. हाँ, खाद्य सुरक्षा में नाम लिखवाने से या नरेगा में पैसे लेने से परहेज नहीं है. देश की सबसे अधिक चिंता भी इस वर्ग को ही रहती है, अपने घर से ज्यादा ! इनकी दशा भी ठीक नहीं है. इनके खाते में भी बचत कम और कर्जा ज्यादा है. एक घर बनाने, बच्चों की शादी, रिश्तेदारी और परिजनों की मौत पर जीमण, प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की फीस, प्राइवेट अस्पताल में ईलाज ...के परम लक्ष्यों में इनका जीवन पूरा हो लेता है. 'छाती कूटा' इसके लिए सही 'एक शब्द कथन' है !
लॉकडाउन में यह तबका भी जैसे तैसे दिन निकाल लेगा. तीन महीने बुरे निकलेंगे पर संभल जायेंगे. खोने को ज्यादा है नहीं.
बीस प्रतिशत ज्यादा है, पर राजस्थान के सम्मान के लिए इतना तो रख लेते हैं, उस तबके के लिए, जिसे हम उच्च आर्थिक वर्ग कहते हैं. बड़ी दुकानें, फेक्ट्रियां, ज्यादा जमीनें, बड़ी सरकारी नौकरियां, राजनीति में टांग , डॉक्टर, बड़े वकील (दस प्रतिशत) और पूँजी बाजार में सक्रिय दलाल.
लॉकडाउन में यह उच्च वर्ग 'आराम' कर रहा है ! बहुत समय बाद सभी घर पर हैं. इनके पास भी कुछ खोने को नहीं है. चार महीने का घाटा बैंक पूरा कर देगी, किश्तें नहीं देनी होगी, सरकारें इन्हीं की, बैंक इन्हीं के. बाजार खुलते ही ज्यादा पैसा इन्हीं के पास आना है, तभी तो उच्च वर्ग है !
अखबार-चेनल वाले भी इस वर्ग की ही चिंता में डूबे जा रहे हैं, अर्थव्यवस्था का क्या होगा, मतलब इनकी कमाई कितनी कम होगी !
मजदूर या बेरोजगार का क्या होगा, वह विषय न छपता है और न दीखता है ! बकरी-भेड़ चराने वाले भी अर्थव्यवस्था में आते होंगे, किसान भी शामिल होंगे, उनका ? वह वोट है ! जाति-धर्म से सहेज लिया जायेगा.
कुल मिलाकर, सारांश में कह दूँ ...राजस्थान एक बड़ा बाजार है, यहाँ दुकानों में बिकता अस्सी प्रतिशत माल बाहर से बनकर आता है...
इसलिए ही तो यहाँ से मजदूर जा कम रहे हैं और आ ज्यादा रहे हैं.
जा रहे हैं, UP_MP और आ रहे उत्पादक प्रान्तों से..गुजरात-महाराष्ट्र-कर्नाटक-तमिलनाडु से.
इसलिए राजस्थान की अर्थव्यवस्था पर तीन महीने की छुट्टी का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा....हमारा मुख्य धंधा खेती है और तीन चौथाई लोग उसी पर निर्भर है. खेती संयोग से इस बार ठीक बैठ गई है.
लेकिन...राजस्थान की निकम्मी सरकार पर क्या असर होगा ? केंद्र सरकार की तरह हर कमी के लिए दो साल कोरोना का बहाना ! मौज हो गई. बोलेंगे, कोरोना के कारण विकास नहीं कर पा रहे हैं.
जैसे पहले ये लोग बड़े तीर मार रहे थे !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~english translation
(The condition of Rajasthan's economy away from newspaper-channel,
From the angle of Abhinav Rajasthan campaign. )
Here fifty percent of people can call you poor. There is nothing in the name of savings in their bank account, only loan. Their life plan can be made for one day, one week or month. You can think of them as laborers, those with less land, handcart, personal small job.
What will be the effect of lockdown on their lives?
It is difficult to get two to three months, the same ground and the same horses back. Same debt, same lack. Land sold in sickness, children studying 'under compulsion' in government schools, malnutrition. DJ, Mobile, Religious Utsab, 'Izzat' of caste, Protection of Religion, to forget about recreation and absence.
Thirty percent people are those who can be called middle class. They have some pieces of land, small but government jobs, small shops. This is the sandwich of society! Neither are rich nor do you consider you poor. Yes, food security is not avoided by writing a name or taking money in NREGA. This class is also the most worried of the country, more than its home! Their condition is also not good. There is less savings and debt in his account too. His life is completed in the ultimate goals of building a house, marriage of children, relationship and death of family members, fees for teaching in private schools, treatment in private hospitals. ‘Chest Kuta’ is the correct ‘one word statement’ for this!
In lockdown, this section will also take out days. Three months will come out bad but will be careful. There is not much to lose.
Twenty percent is more, but for the honor of Rajasthan, we keep so much for that section, which we call the upper economic class. Big shops, factories, more land, big government jobs, legs in politics, doctors, big lawyers (ten percent) and brokers active in the capital market.
This upper class is 'resting' in lockdown! After a long time everyone is at home. They also have nothing to lose. The bank will complete the four-month deficit, will not have to pay installments, the governments, the banks. As soon as the market opens, more money has to come to them, only then is the upper class!
Even newspaper-channel people are getting immersed in the concern of this class, what will happen to the economy, that means how little their earnings will be!
What will happen to the laborer or the unemployed, the subject is neither printed nor seen! Goat-sheep herders will also come into the economy, farmers will also be involved, theirs? That's the vote! Will be saved from caste and religion.
Overall, to say in summary ... Rajasthan is a big market, here eighty percent of goods sold in shops come from outside ...
That is why the workers are going less and coming more from here.
Going, UP_MP and coming from productive provinces..Gujarat-Maharashtra-Karnataka-Tamil Nadu.
Therefore, a three-month holiday will not have much impact on the economy of Rajasthan .... Our main occupation is agriculture and three fourth of the people depend on it. Farming has coincided this time by coincidence.
But… what will be the effect on the poor government of Rajasthan? Like the central government, excuse Corona for two years for every deficiency! It was fun. Will say, we are not able to develop due to corona.
Like before these people were shooting big arrows!
Abhinav Ashok,
Abhinav Rajasthan P